शरद पूर्णिमा के दिन जरुरी पढ़िए ये कथा जिससे माँ लक्ष्मी  जल्द ही प्रसन्न होंगी और जाने चंद्रमा में खीर रखने का महत्व

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Kojagiri Purnima 2024
Kojagiri Purnima 2024

Kojagiri Purnima 2024:हर साल अश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। सभी पूर्णिमाओं में से यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।इसे ‘शरद पूनम’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है, जो शरद ऋतु के आगमन का संकेत देती है। इस दिन को ‘कोजागर पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीला की थी, इसलिए इसे रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। एक और मान्यता के अनुसार, इस दिन माता लक्ष्मी भूमिलोक पर आती हैं, जिसके कारण इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं।

शरद पूर्णिमा की रात खुली आकाशगंगा के नीचे चांद की रोशनी में खीर रखना बहुत महत्वपूर्ण है। तो चलो चांद के प्रकाश में खीर रखने का कारण और महत्व जानते हैं।

शरद पूर्णिमा (Kojagiri Purnima 2024)पर खीर रखने का महत्व

Kojagiri Purnima 2024:शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रोशनी विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा अपने सोलह कलाओं के साथ पूरी चमक में होता है। ऐसा माना जाता है कि इस रात की चांदनी में विशेष तत्व होते हैं जो सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और हमारे शरीर और मन को शुद्ध करते हैं।

यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के चंद्रमा की किरणें अमृतमयी होती हैं। इसलिए, इस रात दूध और चावल से बनी खीर को चांद की रोशनी में रखने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों से इस खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं।

इस दिन, खीर को एक बर्तन में रखकर जालीदार कपड़े से ढककर चांद की रोशनी में रखा जाता है। फिर, अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उस खीर को श्री विष्णु को भोग लगाकर परिवार के सदस्यों में बांटने की परंपरा है। यह परिवार के साथ आनंद मनाने का अवसर होने के साथ-साथ प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है।

चंद्रमा की सोलह कला

Kojagiri Purnima 2024:चंद्रमा की सोलह कला
Kojagiri Purnima 2024:चंद्रमा की सोलह कला
  • अमृत – जीवन का अभिन्न सार।
  • मनदा – सकारात्मकता का स्रोत।
  • पुष्प – सौंदर्य का जीवंत प्रतीक।
  • पुष्टि – स्वास्थ्य और ताजगी की भावना।
  • तुष्टि – इच्छाओं की संतोषजनक पूर्ति।
  • ध्रुति – ज्ञान और शिक्षा का मार्गदर्शक।
  • शाशनी – प्रगति और ऊर्जावानता का प्रतीक।
  • चंद्रिका – शांति और सुकून की अनुभूति।
  • कांति – प्रतिष्ठा और सम्मान का ध्वज।
  • ज्योत्सना – उजाले और प्रकाश का संचार।
  • श्री – समृद्धि और धन का प्रतीक।
  • प्रीति – प्रेम और स्नेह का बंधन।
  • अंगदा – स्थिरता और मजबूती का आधार।
  • पूर्ण – संपूर्णता और सक्रियता की पहचान।
  • पूर्णामृत – सुख और आनंद की वास्तविकता।

शरद पूर्णिमा पूजा विधि-

शरद पूर्णिमा (Kojagiri Purnima 2024)के अवसर पर पूजा करने के लिए सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में जागें और अपने घर की सफाई करें। इसके बाद, एक पवित्र स्नान करें, जिसमें गंगाजल मिलाना न भूलें, और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।

अब भगवान विष्णु के लिए भोग के रूप में खीर तैयार करें। फिर, एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें।

पूजा विधि के अनुसार, विधिपूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा समाप्त करने के लिए मंत्रों का जाप करें और फिर आरती करें।

शरद पूर्णिमा (Kojagiri Purnima 2024) की कथा

Kojagiri Purnima 2024:शरद पूर्णिमा की कथा
Kojagiri Purnima 2024:शरद पूर्णिमा की कथा

Kojagiri Purnima 2024:पूर्णिमा का व्रत सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। हर महीने पड़ने वाली पूर्णिमा (Kojagiri Purnima 2024) तिथि पर व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। एक बार, एक साहूकार की दोनों बेटियां हर पूर्णिमा को व्रत करती थीं। बड़ी बेटी इस दिन को पूरी श्रद्धा के साथ मानती थी, जबकि छोटी बेटी नियमों को नजरअंदाज करते हुए व्रत करती थी।

जब दोनों बेटियों की शादी हुई, तो बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। वहीं, छोटी बेटी के घर बच्चे तो पैदा हुए, लेकिन वे जल्द ही इस संसार को छोड़ देते थे। इससे परेशान होकर उसने एक ब्राह्मण को बुलाया और अपनी समस्या बताई। ब्राह्मण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का व्रत अधूरा करती हो, इसी कारण तुम्हारा व्रत फलदायी नहीं होता।

ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने तय किया कि वह इस बार व्रत को सही तरीके से करेगी। लेकिन, पूर्णिमा से पहले ही उसे एक बेटे ने जन्म दिया, जो जन्म के साथ ही चल बसा। उसने अपने बेटे के शव को एक पीढ़े पर रखा और उसे ढक दिया ताकि कोई देख न सके।

फिर, उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और वही पीढ़ा दे दी। जैसे ही बड़ी बहन बैठने लगी, उसके लहंगे की किनारी बच्चे को छू गई, और वह अचानक जीवित होकर रोने लगा। बड़ी बहन पहले तो चौंकी और छोटी बहन को डांटने लगी कि क्या वह उसे हत्या का दोष देना चाहती है!

छोटी बहन ने कहा, “यह बच्चा तो पहले से ही मर चुका था।” तुम्हारी कृपा और प्रेम से ही यह जीवित है, दीदी।तुम जो पूर्णिमा के दिन व्रत करती हो, उससे तुम पवित्र और दिव्य बन गई हो। अब मैं भी तुम्हारी तरह इस व्रत को पूरा करूंगी।”

इसके बाद, उसने फिर पूरे शहर में पूर्णिमा (Kojagiri Purnima 2024)का व्रत करने का महत्व बताया। जिस तरह मां लक्ष्मी और श्रीहरि ने साहूकार की बड़ी बेटी को सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही हमें भी अपनी कृपा दें।

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